'यात्रा-२' एक कला यात्रा के यात्री, हरिओम पाटीदार' आलेख: डॉ. रेणु शाही (कलाआचार्य, चित्रकार एवं कला समीक्षक जयपुर, राजस्थान।
- A1 Raj
- 14 अप्रैल
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'यात्रा-२' एक कला यात्रा के यात्री, हरिओम पाटीदार'
आलेख: डॉ. रेणु शाही (कलाआचार्य, चित्रकार एवं कला समीक्षक जयपुर, राजस्थान।)
गुलाबी नगरी, जयपुर में कला और संस्कृति को बढ़ावा देने वाले संस्थान जवाहर कला केंद्र में एक प्रर्दशनी का शुभारंभ सोलह मार्च को किया गया था। इसमें 'यात्रा-२' नाम से प्रदर्शित हुई कलाकृतियां स्वाभाविक तथा सरल संयोजन की एक सुंदर अभिव्यक्ति है। जो हरिओम पाटीदार द्वारा लगाई गई थी।

हरिओम स्वयं ही बहुत शांत एवं सरल व्यवहार के धनी व्यक्ति हैं। इनके कृतियों में उनके व्यक्तित्व के साक्षात दर्शन होते हैं। इनकी कृतियां गांव के सरलता और मेहनत दोनों को चरितार्थ करती हुई दिखाई दे रही थी। जिज्ञासावश मैंने उनका साक्षात्कार लेना चाहा तो वो भी सहजता से तैयार हो गए। हरिओम से बात करने पर इन्होंने अपने बारे में जो भी बताया उससे इनके कला यात्रा के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला। मैंने उनके साक्षात्कार के समय कुछ पहलुओं पर चर्चा की तो मुझे उनके कला सीखने की जिज्ञासा के बारे में पता चला।

इनका जन्म मध्य प्रदेश के बिडवाल गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। बचपन खेतों और प्रकृति के बीच लुका-छिपी खेलते हुए बीता। वही से इनके भीतर कलात्मक गुण एवं विचार पनपने लगे थे। इसी लिए स्कूल की पढ़ाई के बाद इन्होंने कला महाविद्यालय से कला की पढ़ाई करने का निश्चय किया। और फिर बी.एफ.ए . गवर्नमेंट ललित कला महाविद्यालय धार, मध्य प्रदेश से 2014 में और एम.वी.ए. राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट महाविद्यालय, जयपुर, राजस्थान से 2016 में चित्रकला में पूर्ण किया। उसके बाद 2017 में रियाज़ अकादमी भोपाल से चित्रण में डिप्लोमा भी किया। इसी बीच जब यह 2018-19 में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट में गेस्ट फैकल्टी के रुप में काम करने आएं तब इन्हें जयपुर से दुबारा जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ।

अब ये अपने चित्रों की एकल प्रदर्शनी के लिए यहां आएं हैं जो "यात्रा" शृंखला के तहत चल रही है। अब तक इन्होंने एकल और समूह कला प्रदर्शनियों, कार्यशालाओं सहित भारत के कई कला शिविर और कला उत्सवों में प्रतिभागिता की है। यहां तक कि दक्षिण कोरिया कला शिखर सम्मेलन 2024 में भी भाग लिया है।
इन्हें कई पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके है। जिसमें पद्मा श्री राम गोपाल विजयवर्गीय अवार्ड, जयपुर, राजस्थान 2016, राजस्थान ललित कला अकादमी स्टेट आर्ट अवार्ड, जयपुर 2020 प्रमुख है।

इनके कृतियों पर चर्चा करने पर इन्होंने बताया कि इनकी कलाकृतियां अमूर्त और प्रतीकात्मक तत्वों के माध्यम से प्रकृति, समय और मानवीय हस्तक्षेप को दर्शाती है। इन चित्रों में प्रमुख रूप से काले, सफेद और पीले रंगों का उपयोग किया गया है, जो प्रकाश, अंधकार और ऊर्जा के बीच के संबंध को इंगित करते हैं। प्रमुख विषय-वस्तु: प्राकृतिक संरचनाएँ और मानव निर्मित तत्व – चित्रों में पेड़, बादल, जल स्रोत और औद्योगिक संरचनाएँ दिखाई देती हैं, जो प्रकृति और शहरीकरण के बीच की टकराहट को दर्शाती हैं। जो प्रतीकात्मक भाषा में है। इन चित्रों में विभिन्न ज्यामितीय आकृतियाँ, बिंदी, रेखाएँ और अमूर्त संरचनाएँ हैं, जो ब्रह्मांडीय संतुलन और मानव अस्तित्व के गूढ़ रहस्यों को दर्शाती हैं। रंगों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी इनके चित्रों में है। पीला रंग ऊर्जा, चेतना और जीवन का प्रतीक है, जबकि काले और सफेद रंग मिलकर परिवर्तन और संतुलन को दर्शाते हैं। यहां संरचनात्मक प्रस्तुति के तहत चित्रों को असमान फ्रेमिंग और टुकड़ों में संयोजित किया गया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि सच्चाई एक आयामी नहीं, बल्कि बहुआयामी होती है।

इन्हें यह कला की प्रेरणा मानवीय स्मृतियों से मिली है जो पर्यावरणीय बदलावों और समाज में निरंतर हो रहे परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती है। कलाकार ने दृश्य संरचनाओं के माध्यम से एक दार्शनिक संवाद स्थापित करने का प्रयास किया है, जिसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य की झलक मिलती है। इनकी कलाकृति का उद्देश्य दर्शकों को अपने अनुभवों और धारणाओं के आधार पर अर्थ खोजने के लिए प्रेरित करना है। यह हमें हमारी जड़ों, पर्यावरणीय संतुलन और समय की गति पर विचार करने के लिए आमंत्रित करता है। यह कलाकृति मानव श्रम, प्रकृति और आधुनिक यथार्थ के बीच संबंधों को गहराई से दर्शाती है। इसमें नाजुक रेखाचित्रों और प्रतीकों का संयोजन है, जो हमारी सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं पर टिप्पणी करते हैं। प्राकृतिक एवं मानव निर्मित तत्वों का संतुलन चित्रों में फूल, पौधे, पक्षी और जल जैसे प्राकृतिक तत्वों को दिखाया गया है, जो जीवन के मूलभूत घटकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं, हंसिया और बोरी जैसे औजार श्रम और कृषि अर्थव्यवस्था की ओर संकेत करते हैं।

दीर्घा में प्रदर्शित श्रम और अस्तित्व का संघर्ष, नीचे रखी बोरी और उसमें से निकलता हंसिया मेहनतकश वर्ग की चुनौतियों और उनकी निर्भरता को व्यक्त करता है। यह आधुनिक जीवन में कृषि और श्रमिक वर्ग की उपस्थिति को एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करता है। चित्रों में सूक्ष्मता और प्रतीकवाद को नाजुक रेखाएँ, हल्के रंग और विस्तृत प्रतीकवाद चित्रों को विचारशील और व्याख्या-योग्य बनाते हैं। यह हमें आम जीवन के गूढ़ पहलुओं पर चिंतन करने के लिए प्रेरित करता है।

चित्र में मौन संवाद और विरोधाभास, चित्रों की सादगी और शांति तथा हंसिया और बोरी का स्थूल एवं कठोर स्वरूप—इन दोनों के बीच का विरोधाभास एक गहरी कहानी कहता है।








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