"रामदेव जयंती की पुर्व संध्या पर कलात्मक श्रद्धांजलि"
- A1 Raj
- 3 सित॰
- 3 मिनट पठन
"रामदेव जयंती की पुर्व संध्या पर कलात्मक श्रद्धांजलि"
म्हारो हेलो सुणोजी रामा पीर...लोक गीत व तेरहताली से की बाबा रामदेव की अराधन
जवाहर कला केंद्र, जयपुर द्वारा एक सितंबर, दो हजार पच्चीस को बाबा रामदेव जयंती के पुर्व संध्या पर संवाद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन केंद्र के ही रंगायन सभागार में किया गया।

संवाद प्रवाह में नीरज कुमार त्रिपाठी, अधीक्षक जयपुर सर्किल पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग। डॉ. सुमन धनाका, विभागाध्यक्ष, कानोडिया कॉलेज, इतिहास विभाग। लोक नृत्य विशेषज्ञ अंजना शर्मा के साथ सूत्रधार के रूप में वरिष्ठ सांस्कृतिक पत्रकार संतोष शर्मा मौजूद थे। जो कुछ प्रश्नों के साथ संवाद प्रवाह में विचार व्यक्त कर रहे वरिष्ठ पत्रकार संतोष शर्मा का कहना है कि 'राजस्थान में विभिन्न जिलों के अंतर्गत स्थित वहा के लोक देवी- देवताओं के पर्यटन सर्किट का निर्माण होना चहिए, जिससे राज्य के अतिरिक्त सुदूर जिलों में देश-विदेश के पर्यटक धार्मिक पर्यटन के तहत लोक देवताओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सके एवं उनके इतिहास, उनके सिद्धांत तथा धार्मिक मान्यताओं के बारे में गहराई से समझ सके। वही राज्य के शिक्षा विभाग, कला, पर्यटन और संस्कृति विभाग एवं पुरातत्व विभाग की ओर से इन सभी लोक देवताओं के प्रसिद्ध जगहों पर विद्यालय के विद्यार्थियों को हर 3 माह में एक बार शैक्षणिक भ्रमण करवाना अनिवार्य हो, जिससे बाल्यकाल से ही विद्यार्थियों के हृदय में प्रदेश के सभी धार्मिक आस्था के प्रतीक लोक देवताओं के चमत्कारों की जानकारी के साथ उनमें मानवीय समरसता के गुण विकसित हो सके। इसके अलावा प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग की ओर इन सभी लोक देवताओं के ऊपर विस्तृत रूप से उच्च स्तरीय शोध कार्यक्रम की भी आवश्यकता है।'
इसी क्रम में डॉ. सुमन धनाका ने बाबा रामदेव की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए समाजिक समरसता और लोक कल्याण में उनकी भूमिका के विषय में बताया। उन्होंने कहा कि बाबा रामदेव हिंदुओं के लिए कृष्ण के अवतार के रूप में तो है ही परन्तु समाज के सभी वर्गों को समाहित कर कामड़ समुदाय की स्थापना की। कीर्तन जिसे जम्मा जागरण आंदोलन कहा जाता है, उसके जरिए सबको भक्ति और सामाजिक समरसता का पाठ सिखाया। उन्होंने ने यह भी कहा कि बाबा रामदेव की वाणी में नैतिक शिक्षा और वैश्विक बंधुत्व के भावों की प्रधानता रही।
नीरज कुमार त्रिपाठी ने बताया कि 15वीं सदी के पूर्वार्ध में द्वारकाधीश की कृपा से बाबा रामदेव का प्राकट्य हुआ, जो एक वैष्णव समुदाय के लोक देवता होने के साथ ही पीर की उपाधी भी धारण किए हुए हैं। लोक देवता रामदेव की राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी मान्यता है। क्योंकि पोकरण के बाद इनका सबसे बड़ा मेला सिंध स्थित एक मंदिर में लगता है। उन्होंने यह भी बताया कि लोक देवता के इतिहास का पुनर्लेखन और नवीन शिक्षा में उन्हें शामिल करने का प्रयास जारी है।
अंजना शर्मा ने लोक कलाओं के लालित्य और इनके जरिए लोक देवताओं की महिमा के बखान पर विस्तृत व्याख्यान दिया। सूत्रधार संतोष शर्मा ने राजस्थान के लोक देवताओं के थान-छतरियों व स्मारकों के लिए पर्यटन केंद्रों को जोड़ने व संरक्षण करने, धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने, नवीन शिक्षा प्रणाली में लोक देवताओं को शामिल कर उन स्थानों पर विद्यालय एवं महाविद्यालय के विद्यार्थियों को भ्रमण करवाने की मांग की तथा साथ ही लोक देवी-देवताओं के नैतिक शिक्षा का अनुसरण करने पर पुनः बल दिया गया।

कार्यक्रम के अगली कड़ी में प्रसिद्ध लोक गायिका सुमित्रा देवी ने गणेश वंदना से सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत की। 'थानै लेवण आऊंला, बाई तू रोया ना करिये' गीत में भाई बाबा रामदेव और बहन सुगना बाई के बीच प्रेम को दर्शाया। 'रो रो कुरलावे बहना, जियड़ो उदास है' में बाबा रामदेव के प्रति सुगना बाई के भावों का वर्णन किया। 'हेलो म्हारो सुणजो रुणिचै रा राजा', 'लीला पीला थारा नेजा चमके पीर जी' गीतों ने सभी को भाव विभोर कर दिया। 'रुणीचे रा धणिया अजमाल जी रा कंवरा' गीत की प्रस्तुति ने सभी को झूमने पर मजबूर कर दिया। साथ ही लीला देवी समूह व राधिका देवी समूह के कलाकारों ने तेरहताली व मंजीरा नृत्य की प्रस्तुति से न केवल बाबा रामदेव की अराधाना ही नहीं की बल्कि राजस्थान की लोक संस्कृति से दर्शको का साक्षात्कार करवाया हो, जोरदार बरसात के बीच
कार्यक्रम के दौरान आसमान से गिरती बूंदों के मधुर संगीत के साथ ऐसा लग रहा था कि बादलों ने भी बाबा रामदेव को प्रणाम कर अपनी भक्ति अर्पित कर रहे हो। इस प्रकार लोक देवता बाबा रामदेव की महिमा का बखान करते लोक गीतों की गूंज, भजनों पर तेरहताली नृत्यों में मंजीरे की झंकार और संवाद में जनप्रिय बाबा रामदेव पर विशेषज्ञों के विचारों का प्रवाह उनके तरफ एक आभार की तरह दिखाई दे रहा था। जो त्याग करने वाले एक देवता के प्रति समर्पण की भावना से ओत प्रोत रहा। दर्शको में रंगकर्मी, साहित्यकार, चित्रकार के साथ शहर के कई गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
धन्यवाद।
डॉ. रेनू शाही (राजवंश)

डॉ. रेनू शाही, कला आचार्य, चित्रकार एवं कला समीक्षक, जयपुर ( राजस्थान)
email - dr.renushahi@yahoo.co.in







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