"मोक्षधाम की कला: एक शाश्वत सत्य की अनुभूति"
- A1 Raj
- 9 फ़र॰ 2023
- 4 मिनट पठन
कला शब्द से संपूर्ण संसार परिचित हैं l जिसे अंग्रेजी में "आर्ट" कहते हैं l इसे सबसे आसान विषय के रूप मे जाना जाता है I परंतु आज मैं कला की गहराई से आप सभी का परिचय कराना चाहती हूँ l इसीलिए जयपुर के उस स्थान के कलात्मक पक्ष की बात करेगें जो मनुष्य के अंतिम यात्रा पर जाने का स्थान है I

बात मार्च 2022 की है जब मैं मेरे पति दाउ दयाला शर्मा के साथ किसी रिस्तेदार के यहां मिलने जा रही थी I एक कलात्मक परिवार से सबंध होने के कारण जब यह जानकारी मिली कि कहीं चित्रण का कार्य हो रहा है जिज्ञासावश मैं देखना चाहती थी पर जब ये पता चला कि वह एक श्मशान है, एक महिला होने के कारण थोड़ी हिचक हो रही थी , क्योंकि जलती हुई चिताओं को दिखना एवं वहां की दुर्गंध मुझे विचलित कर रही थी बावजूद उसके मेरी जिज्ञासु प्रवृति ने श्मशान में भीतर जाने को प्रेरित किया l इसमे कलाकृतियों को देखते के साथ ही कलाकार से मिलने की लालसा अधिक रही I

कहते है कि कला मनुष्य के जन्म से मृत्यु तक साथ-साथ रहती है I यह बात "मोक्षधाम" के अंदर जाकर सत्य साबीत हो गई I भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार कला को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्रदायिनी कहा गया है I जिसका उल्लेख "विष्णुधर्मोंतर" पुराण के चित्रसूत्र नामक अध्याय में एक सूक्ति द्वारा किया गया है-
'कलानाम प्रवनम चित्र धर्माकार्थ मोक्षदम l'
अर्थात्- कला के द्वारा धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है l
उक्त सन्दर्भ में संक्षिप्त में बात करना चाहूँगी I कला द्वारा धर्म अर्थात् भक्ती भावना से ओतप्रोत होकर दैवीय विश्वासों को चित्र या मूर्ति के रूप में एक आकर एवं रंग रूप प्रदान कर स्वयं को धार्मिक आधार पर संतुष्ट कराता है l कला द्वारा अर्थ से तात्पर्य कलाओं का उपयोग जब व्यवसाय या जीविकोपार्जन के लिए किया जाए l कला द्वारा काम से तात्पर्य है कि कला कामकला का ही एक अंग है साथ रति सुख की प्राप्ति में भी सहायक है l किसी कलात्मक परिवेश को सभी पसंद करते है, जैसे- गायन, वादन, नृत्य, चित्र, मूर्ति, वस्त्र अलंकरण, मंदिर वास्तु,पाककला इत्यादि से सभी को येन्द्रिय सुख की अनुभूति होती है l कला द्वारा मोक्ष से तात्पर्य है कि जब ईश्वर में अतिश्रद्धा एवं विश्वास हो जाता है तो मनुष्य ईश्वर के मूर्त-अमूर्त, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सभी प्रकार के विचारों तथा कल्पनाओं को आकार दे अभिव्यक्ति देने लगाता लगता है I कोई चित्रों के माध्यम से, कोई ग़द् या पद लिख कर व गा कर, जैसे- तुलसीदास, सूरदास, मीरा आदि l कुछ ने तो मंदिरों का निर्माण भी करवाये है l इसके उदाहरणों से इतिहास भरा हुआ है l भारतीय आश्रम व्यवस्था में तो सन्यास आश्रम में रहकर मोक्ष के प्राप्ति करने की बात कही गई है I

जयपुर अपने कलाओं के लिए विश्व विख्यात नगरों में सम्मिलित है l उस पर भी श्मशान जैसे स्थान पर कलाकृतियों का निर्मित होना एक अलग ही स्वरूप प्रस्तुत करता है l जयपुर नगर के चांदपोल बाजार के विद्याधर नगर की ओर जाने वाले रास्ते में चांदपोल सर्व धर्म समाज स्थित है l जहां पर जयपुर नगर के जाने-माने चित्रकार देवेंद्र कुमार भारद्वाज जी से मुलाकात हुई l वह उस समय भित्ति चित्रण का कार्य कर रहे थे l मेरी जब उनसे बात हुई तो बहुत ही रोचक जानकारियां प्राप्त हुई l उन्होंने बताया कि लगभग चार माह से वह यहां पर चित्रकारी कर रहे हैं l जिसके लिए उन्हे उनके एक चित्रकार मित्र लेकर आए थे l इनके सहयोगी के रूप में जगदीश एवं गोविंद कार्य कर रहे है l देवेंद्र के निर्देशन में सभी चित्रकारों ने राम तथा कृष्ण के जीवन के प्रसंगों के अतिरिक्त संतों - महात्माओं एवं गरुड़ पर सवार विष्णु, अग्नि, ओम के साथ-साथ प्राकृतिक दृश्यों को भी वहां के भित्ति पर चित्रित किया है l देवेंद्र जी ने बताया कि माहेश्वरी समाज द्वारा "सर्वधर्म मोक्षधाम" को नया रूप दिए जा रहे हैं l जिसके अंतर्गत स्नानगृह, पूजा का स्थान, अस्थियां रखने के लिए लॉकर, शव रखने के लिए फ्रिज रूम, कीर्तन- भजन के कक्ष एवं प्रसार के साधन, गर्म पानी के लिए गीजर आदि पूरे आधुनिक व्यवस्था के साथ दो बड़े सभागार कक्ष (बैठक) शिव मंदिर तथा पर्यावरण को संतुलित रखने हेतु मछलियों के तलाब तथा नीम, बेल एवं पीपल के वृक्षों के साथ-साथ फव्वारे को भी लगाया गया हैं l अन्य कर्मकांड जैसी सुविधाओं के लिए पंडित एवं नाई जैसे लोगों की भी नियुक्ति की जा रही है l यहां की विशेषताओं में विशेष यह है कि यहां शवदाह के लिए कंडो का उपयोग होता है I इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सौन्दर्यीकरण के लिए चित्रकारी का कार्य भी कराया जा रहा था l

चित्रकार देवेंद्र भारद्वाज ने बताया कि वह इस प्रकार के स्थान पर पहली बार चित्रण कर रहे हैं जबकि वह स्वतंत्र कलाकार के रूप में कागज, कैनवस, बोर्ड, मंदिर, रेलवे स्टेशन आदि अनेक स्थानों के अलावा कई धरातल पर अनेक प्रयोग करने के साथ विभिन्न माध्यमों में कार्य करते है, लेकिन यहां पर उनके कार्य का अनुभव अलग रहा l यहां चित्रण करते हुए विरक्ति का भाव उत्पन्न होने लगा है कई कई बार बाहर के संसार को भूल जाने वाले स्थिति भी उत्पन्न हुई l यहां उन्हें यह अनुभव हुआ कि अंतिम सत्य क्या है ?

चित्रकारों के अनुभव से मुझे यह अनुभव आवश्यक हुआ कि यहां पर धर्म,अर्थ, काम एवं मोक्ष की बात सत्य हो रही हैl उसी एक स्थान पर रोजगार भी मिला हैं और आत्मज्ञान का अनुभव भी किए गये हैं कि पंच तत्वों से बना ये शरीर आखिरकार पंचतत्वों में ही विलीन हो जाता है l
यही कला का भी सत्य है और संसार का भी l
धन्यवाद !
लेखिका का परिचय- डॉ. रेणु शाही वर्तमान में जयपुर में रह रही है एवं अतिथि सहायक आचार्य के रूप में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट, जयपुर में चित्रकला और कला इतिहास विषय के अध्यापन का कार्य करते हुये निरंतर कला सेवा का कर रही है l इनके अब बहुत से कला से संबंधित लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित हो चुकी है l अपने लेखन का कार्य यह कला की गहराइयों को समझने के लिए करती है l

डॉ. रेणु शाही
( कलाकार एवं कला समीक्षक )





































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