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नारी चित्रण में गाय के गोबर का प्रयोग रेखा खूबी या प्रयोग

  • लेखक की तस्वीर: A1 Raj
    A1 Raj
  • 9 फ़र॰ 2023
  • 3 मिनट पठन

*रूबरू* श्रृंखला में ,

महिला चित्रकार

रेखा अग्रवाल

( सर्वे भवन्तु सुखिनः

सर्वे सन्तु निरामया:।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मां

कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।)

प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग कर अपने आप को सुरक्षित और रोगाणु मुक्त करने की परंपरा हमारे यहां वर्षों पुरानी है।

फिर चाहे दैनिक जीवन से जुड़ी वस्तुएं हो या हमारे घर आंगन जहां हम ज्यादा समय व्यतीत करते हैं।

राजस्थान के सदूर गांव के

घर आंगन को सजाने के लिए,

जो घरों की दीवारों और आंगन को प्राकृतिक तत्वों के विशेष

मिश्रण से तैयार करते हैं।



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(गो लेपन) पद्धति में, गाय का गोबर, चिकनी मिट्टी, चारे की भूसी, गोंद,

के विशेष रूप से मिश्रण कर,

लेपन ( लीपने के लिए ) तैयार

किया जाता है।

उसे घर आंगन में लगाकर कलात्मक कलाकृतियों से घर को सजाया जाता है।ऐसी हमारी पारंपरिक लोक कला से प्रभावित होकर युवा महिला चित्रकार

रेखा अग्रवाल ने

गो लेपन पद्धति पर माण्डना

पेंटिंग द्वारा ग्रामीण परिवेश को ,

ग्रामीण जीवन की दैनिक गतिविधियों

के क्रियाकलापों ,आंतरिक साज-सज्जा, और भावनात्मक मनोभाव का

अत्यंत सुंदर ढंग से चित्रण करती हैं।

इनके चित्र संवाद करते प्रतीत होते हैं। पारंपरिक तौर तरीके से सूपड़े से, गेंहू पटकती , कहीं क्रियाकलापों को चित्रित करती हैं।


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लोकजीवन की विविध पक्षों को चित्रित करती हैं इनका अलौकिक पक्ष मुखर होता है विवाह के बन्ना बन्नी इससे पुरुष के प्रेम संबंध विरह मिलन आदि विषयों पर इनके चित्र देखे जा सकते हैं।

देवी देवताओं के चित्र मांगलिक अवसरों विवाह सगाई जैसे अवसरों की को चित्रित किया है।

जिसमें मानवी विविध भावनाओं के प्रस्फुटन है । लोकजीवन संस्कृति पक्ष भी मुखर होता है।



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चित्रों में आनंद व उल्लास की भावनाओं की अभिव्यक्ति है ।

लोक कला के साथ आदिम प्रवृत्तियों मनोभावों को इन्होंने चित्रित किया है।

लोक नृत्य ,हो या झरोखे से झांकते, महिला अपने प्रेमी का इंतजार ,तीज त्यौहार ,

पर होने वाली करके आंतरिक सज्जा

इनके चित्रों में देखी जा सकती है। इनके चित्रों में प्रासंगिकता और परिवेश का खूबसूरत प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है।

गो लेपन। ( प्रकृती से जो सहज प्राप्त

भौतिक साधन का चयन ,अपनी कला भाषा को करने के लिए किया गया है। इसलिए इन्होंने परंपरागत गोबर का लेप लगा कलाकृति को लोकरंग देने का प्रयास

किया है।)

माध्यम से चित्र बनाने का उद्देश्य के बारे में पूछने पर बताती है।

गोबर पंच महाभूत तत्व से मिलकर बनता है और गाय का गोबर को शुद्ध माना गया है इसका प्रयोग हमारे रीति-रिवाजों यज्ञ अनुष्ठानों में किया जाता है जो वस्तु में शुभता लाता है।

इसके प्रयोग से घर में रेडियसन नहीं होता है सकारात्मक ऊर्जा मिलती है अच्छे स्वास्थ्य के लिए इसका प्रयोग सर्वोत्तम है और बीमारियां कोसों दूर रहती हैं।

इनके चित्रों में राजस्थानी और लोक कला माण्डना का सुंदर प्रयोग करके चित्रों को के सौंदर्य को दुगना करती हैं इन इसमें मिट्टी की सौंधी महक कला का पुट सभी को आकर्षित करता है ।

चित्रों में मूल प्राथमिक रंगों का प्रयोग जैसे लाल नीला पीला के साथ पारंपरिक व लोक कला के प्रयुक्त डिजाइनों से अद्भुत आभा बिखेरती है।

इनके चमकीले रंगों के बारे में पूछने पर बताते हैं कि ग्रामीण महिलाएं ज्यादातर चमकिले रंगों का प्रयोग करते हैं । जो ताजगी और चमकदार क्योंकि इन रंगों में कोई मिलावट नहीं होती खेत खलियानओं

में कार्यरत लोगों के ही इनकी कपड़ों और वेशभूषा से आसानी से पहचान जा सकता है मुझे भी यह रंग आकर्षित करते हैं ।

इनके रंग बिरंगे परिधान और लोक कलाऐ। अपनी परंपराओं का सुंदरी और प्रकृति के निकट विरासत श्रृंखला में लोक कला और गांव की खूबसूरती को इन्होंने चित्रित किया है।

इन्होंने ग्रामीण चित्र ग्रामीण परिवेश को सहायक रूप में चित्रित किया है कुछ संस्थापन (इन्टालेशन )भी किये है। जैसे आटा चक्की (ओवरी) धान की कोठी छाबड़ी यह सब अब दुर्लभ वस्तुओं की श्रेणी में आ रही है और पर्यावरण का संदेश देते देती है। हाथ की बनी चक्की से पिसा हुआ आटा स्वास्थ्यवर्धक व पौष्टिक होता है धान की कोठी में घुन नहीं लगती है।


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कलाकृति में के निर्माण में गाय के गोबर और नारी चित्रण को ही चुना है क्योंकि दोनों ही का संबंध ममता और मातृत्व का है जो निस्वार्थ भाव सर्वोपरि है।

रेखा अग्रवाल मूलत राजस्थान जयपुर की है। राजस्थान विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की है बचपन के शौक को इन्होंने अपनी जीविका का साधन बनाया है।

इनके पति श्री राजकुमार अग्रवाल

पोर्ट्रेट और एंटीक पेंटिंग में महारत हासिल है। राजाओं के चित्र किलों महलों के चित्र देखे जा सकते हैं।

घर के कलात्मक वातावरण के कारण रेखा अग्रवाल को कला के लिए बहुत प्रोत्साहन मिला और अपनी कला यात्रा निरंतर नए-नए आयामों को प्राप्त

कर रही हैं।




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इनकी विभिन्न श्रृंखलाओं में विरासत ग्रामीण परिवेश नाचते गाते लोग में विभिन्न विषयों को लेकर चित्र बनाए हैं ।

जिसमें रंगों के साथ मांडनाओं की डिजाइनओं को चित्र में टैक्चर को रूप में शामिल किया है।

जो अद्भुत प्रभाव देती है

अपनी कला में लोक कला के साधन आधुनिक कलाकृतियों को अधिक संपन्न बना रही है।

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